Saturday 15 December, 2007

अहसास


मैं फिर से भावनाओं और ख्यालों से घिर गया। मैंने अपने आप से कहा था कि फिर दुबारा नही। फिर से उस गहरे दलदल में नही फँसना। पर समय की मार देखिए... जब वक़्त अच्छा चल रहा होता है तो सब कुछ भूल जाते हैं, और वही ख्याल और भावनाएं दिलों दिमाग पर छा जाती है। फिर सामने कुछ दिखता नही है। मैंने समझाने समझने के बाद भी अपना दिल किसी के ख्यालों में लगा दिया। वो मेरी जिंदगी में एक आंधी की तरह आई और तूफान कि तरह चली गयी। और जब सपने टूटे तो पैरों के निचे से ज़मीन ही खिसक गयी।

उसके ख्याल इतने प्यारे थे कि सब कुछ भुला कर मैं कहीं खो गया था। उसके अहसास से हवाओं में एक मीठी खुशबू घुल जाती थी। उसकी आँखें, उसकी खामोशी इतना कुछ कह देती थी की मैं उसी में उलझ कर रह गया। हकीक़त से दूर, कभी उसका सामना करने की कोशिश नही की। पर जब सामने आई तो सब कुछ लूटा बैठा था मैं। मैं फिर से तनहा हो गया था। फिर से वही गलती हो गयी थी। पर साला दिल है के मानने को तैयार नही। दरअसल उसकी महक इतनी मीठी होती है कि हमेशा के लिए भूलना थोडा कठिन होता है।

आज सुबह उठ्ने का मन नही कर रहा था। आँखे लाल और मोटी हो रखी थी। कल रात मैं खूब रोया था। मेरे पास अब कोई नही था जिससे मैं अपने दिल कि बात कर सकता। न ही मेरे घरवाले और न ही दोस्त। बिल्कुल तनहा था मैं। मैं सोचता रहा... प्रभु ने मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया। क्यूँ कोई कहता है ... मुझे तुमसे प्यार है... हर वक़्त तुम मुझे दिखाई देते हो.... तुम्हारा अहसास, तुम्हारी खुशबू मेरा पीछा करती है ..... और अचानक सब कुछ बदल जाता है। दरअसल मैं एक जमूरे कि तरह खेल दिखा रहा था। मैं इन्सान था ही नही। मेरा कोई .......
हे भगवन मैं फिर से उसी भंवर में डूबने जा रहा हूँ। नही नही.... ये समय ख्वाबों और किसी के अहसास का नही है.... मैं जनता हूँ मेरा स्वाभाव ऐसा नही है..पर......ये समय काम करने को है। बाई बाई दोस्तों... अब थोडा काम कर लेने दो। बाईईईईईईईई........

Friday 14 December, 2007

दिल दर्द और बाज़ार

समय समय पर कुछ शेरों शायरी करता रहता हूँ। उन्हीं को आप के सामने पेश कर रहा हूँ। आपकी टिपण्णी का स्वागत है।



वक़्त कि बात समझ ना सका मिलने के बाद भी आप से
ए खुदा पूजा करूं तेरी या नफ़रत अपने आप से।



दिल मे हो दर्द तो हर बात बुरी लगती है
रकीब हो सच्चा तो फासले भी छोटे लगते हैं।



नानी की कहानी और किस्सों मे परियों को सुना था
आज मुलाक़ात हुई तो बस देखता ही रह गया।



बिछड़ भी गया आप से तो गम ना होगा मुझको
तेरी तस्वीर की इबादत से कौन रोकेगा मुझको ।



फूलों को क्या खबर उनके चाहने वालों की
ख्वाहिश ऐसी कि दफ़न भी हो तो उनकी सेज पर।




दिल के कद्रदान रहे कहॉ
मंडियों मे भाव उंचे हो चले हैं।




दर्द खामोश मुस्कराहट से बयाँ नही होता
उसे जुबान पे पिरोना भी होता है।

Wednesday 12 December, 2007

दर्द का रकीब



अपने खामोश आंखों से,
तन मन मे हलचल मचा गया कोई।
अपने तनहाइयों से
मेरे कानों मे शोर कर गया कोइ।
अपने होंठों से
मेरे दिल के तार छेड़ गया कोई।


ढूंढ़ता हूँ उसे अब ,
तो नजर आती नही ,
खामोशियों मे फिर से खो गया है कोई;
तनहाइयों मे फिर लॉट गया है कोइ;
होंठों को फिर सिल गया है कोई;
कहॉ जाऊं किसे ढूंढु ,
दर्द का रकीब फिर बना गया है कोई।

Monday 10 December, 2007

शराब


धन्यवाद उमाशंकर जी, आपने अच्छी याद दिलाई। मैं तो इन दिनों कंही खो ही गया था। सुना आप भी पाकिस्तान कि सैर कर आये हैं। उम्मीद है कुछ नए अनुभव आपके ब्लोग पर देखने को मिलेंगे।


लिखना जिन्हे आता नही
उनसे भी तुमने लिखवाई है
खुदा ने शराब ऐसी चीज ही बनाईं है ।

अब ना गम ना तन्हाई है
कैसी रुमानियत सी छाई है
खुदा ने शराब ऐसी चीज ही बनाईं है ।

दिल मे छुपा के बैठे थे
जुबान पे अब बात आयी है
खुदा ने शराब ऐसी चीज ही बनाईं है ।

सब छूटने को है अब
जाने कि बारी आयी है
खुदा ने शराब ऐसी चीज ही बनाईं है ।