Thursday 31 May, 2007

मोहब्बत


नमस्कार, आज ही क़ैद से छूट कर वापस आया हूँ । दरअसल शुक्र ग्रह से आये एक प्राणी ने शनिवार को मेरा अपहरण कर लिया था । कल ही मुझे छोड़ा है, साले ने बहुत सताया , रातों कि नींद, दिन का चैन सब चुराया । अब जबकि मैं छूट गया हूँ तो सोचा चलो फिर से आपलोगों को तंग करूं ।

मजबूर ये हालत इधर भी है उधर भी
तनहाई कि एक रात इधर भी है उधर भी
कहने को बहुत कुछ है मगर किससे कहे हम
कब तक यूं ही खामोश रहे और सहे हम
दिल कहता है दुनिया कि हर एक रस्म उठा दें
दीवार जो हम दोनो में है आज गिरा दें
क्यों दिल में सुलगते रहें लोगों को बता दें
हाँ हमको मोहब्बत है मोहब्बत ....
अब दिल में यही बात इधर भी है उधर भी ।

Thursday 24 May, 2007

वो क्या था ?



बात उन दिनों कि है जब मैं क्लास चौथी या पांचवी मे पड़ता था । मेरे स्कूल मे एक टीचर हुआ करतीं थी, नाम याद नही वैसे भी नाम मे क्या रक्खा है । हाँ लेकिन चेहरा अब भी याद है; घुंघराले बाल थे उनके, मोटी लंबी आंखे, गोल चेहरा कुल मिला कर बहुत अच्छी नही पर मुझे बहुत अच्छी लगतीं थी और आज भी अच्छी लगती है ।

मैं उस वक्त ८ या ९ साल का होऊंगा । लाजमी है कि उस उम्र मे मुझे रिश्तों के बारे में बहुत पता नही था इतना जरुर था कि जब भी वो क्लास लेने आती थी मुझे बहुत अच्छा लगता था । मै अन्दर ही अन्दर उनको लेकर कितने ख्वाब देखने लगता था । यधपि हमारे क्लास मे बहुत लडकियां मेरे उमर कि थीं पर फिर भी मेरा ध्यान उनकी तरफ कम होता था । मै तो बस टीचर कि आँखों मे ही देखता रहता था । वो भी मुझे बहुत प्यार करती थी क्यों कि मैं क्लास के अच्छे पढने वाले लड़कों में आता था ।

एक बार कि बात है ... मै उस वक़्त क्लास का मोनिटर था । मोनिटर होने के नाते मेरी चलती थी । मै उस दिन घर से बेना (पंखा ) का डंडा लेकर स्कुल गया था क्यों कि मै थोद्दा और रॉब झाड़ना चाहता था ।

मेरे साथ मेरे चाचा का लड़का मनोज भी पढता था, वो पढने मे कम मार पिटाई मे ज्यादा ध्यान देता था । उसी दिन टिफिन (लंच) मे उसकी हमारे ही क्लास के दुसरे सेक्शन के लड़के सूरज के साथ मार पिटाई हो गई । इस बात को लेकर मै बहुत ग़ुस्से में था मैंने सोचा ठिक है बच्चू मै तुम्हे बताता हूँ ... पर उस वक़्त कुछ किया नही । टिफिन के बाद देखा कि सूरज टॉयलेट कि तरफ जा रह है । मोनिटर होने के नाते किसी बहाने से मै क्लास से बाहर निकला और टॉयलेट के बाहर जा कर खड़ा हो गया । उसके निकलते ही मैंने उसी डंडे से धुलाई चालू कर दी . उसी क्रम में मेरी उंगली डंडे मे लगे किल से कट गयी और कटी भी इतनी कि अलग होने के आस पास । बस फिर क्या था खून देखते ही ड़र गया था और सूरज भी भाग गया था । किसी तरह मैं उंगली पकड़ कर प्रिंसिपल रूम कि तरफ भगा । काफी दर्द हो रहा था आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे । खैर प्रिंसिपल रूम मे मेरी पट्टी वटि लगायी गयी । मैं रो रहा था तभी देखा कि वही टीचर सामने से आ रही है ... उनको देखते ही मई अपने आप को सँभालने कि कोशिस करने लगा .

वो मेरे पास आई और मेरे हाथो को अपने हाथ में लिया ... मेरे उंगलियों को जैसे ही छुआ दर्द मानों ग़ायब ही हो गया । मैं चुप हो गया था आंसू रूक गए थे । मैं फिर से गोते लगाने लग गया था । फिर ना जाने क्या क्या ख्वाब देखने लग गया था .....
मैं ये आप बीती इस लिए लिख रह हूँ क्यों कि इसकी धुंधली यादें आज भी मुझे कंही ले जाती है । पर इसके पीछे कई सवाल भी है जिनका उत्तर आज आज भी खोजने कि कोशिस करता हूँ ।

इस उमर में क्या ऐसा होता है ?

अगर होता है तो क्लास मे और भी हम उम्र लडकियां थीं टीचर को लेकर ही क्यों?

उनके छूने से दर्द का गायब हो जाना क्या था ?

इस रिश्ते को क्या कंहेंगे ?

ऐसे कई सवाल है, मैं जाना नही चाहता पर आज भी मैं अपनी जिंदगी के पीछे के पन्ने पलटता हूँ तो खो जाता हूँ.....

क्या आप भी ?

वो कुछ कहती है


मुझे चुप रहना गवारा नही
तुम्हे चाहा तो पता चला
खामोसियाँ भी कुछ कहती है ।



मुझे पता नही
गुमसुम में भी मजा है
तुम्हे चाहा तो पता चला
तन्हाई क्या कहती है ।

मुझे पता नही
बंदिशों में भी मजा है
तुम्हे चाहा तो पता चला
सादगी क्या कहती है ।

मुझे पता नही
चाहत क्या चीज है
तुम्हे चाहा तो पता चला
प्यार क्या कहता है ।

Tuesday 22 May, 2007

मैं और मेरी तनहाई


मैं और मेरी तनहाई
अक्सर ये बातें करते हैं
तुम होती तो कैसा होता?
तुम ये कहती तुम वो कहती
तुम इस बात पे हैरान होती
तुम इस बात पे कितनी हंसती
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
मैं और मेरी तनहाई ....

I Want to Dance and Play...




Hello friends... plaese bear with me. now this time I am writing few lines from the song "Hum bane tum bane" from the film "Ek Duje ke Liye". where the kamla hasan singing this song...



I don't know what you say...
But I want to dance and play...
I want to play the game of love...
I want you in the name of Love.

Not here, there up in the sky...
come with me , i want to fly...
don't stop.... let the whole world know.
come fast... come fast.. don't be slow...
life is fare... life is slow....

कभी कभी


कभी कभी मेरा मन भी ना जाने क्यों ऐसे गानों के पिछे भागता है जो मुझे पसंद है ।
मै जनता हूँ आप में से कुछ लोग ऐसे भी होंगे जिन्हे ये पसन्द ना आये । मगर यूं ही कभी कभी मेरा दिल में ख्याल आता है कि मैं आपको तंग करता रहूँ ।

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है ,
कि जिंदगी तेरी जुल्फों के नम्र छांव मे गुजरने पाती
तो शायद आप हो भी सकती थीं ।

रंजो गम कि स्याही जो दिल पे छाई है
तेरी नजर कि सुवाओं मे खो भी सकती थी ।
मगर ये हो न सका
मगर ये हो ना सका , और अब ये आलम है
कि तू नही तेरा गम तेरी जुस्तजू में भी नही ।
गुजर रही है कुछ इस तरह से जिंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे कि आरजू भी नही ।

न कोई राह, न कोई मंजिल, न कोई रौशनी का सुराग
भटक रही है अँधेरे मे जिंदगी मेरी ,
इन्ही अंधेरों मे रह जाऊंगा कभी खो कर ।
मै जनता हूँ मेरी हम्न्फ्फस
मगर यूं ही कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है .......

Monday 21 May, 2007

बैधानिक चेतावनी

सबसे पहले मै आप सभी को बता दूं कि इस ब्लोग पन्ने पे उपस्थित जीतनी भी अस्वीकार्य सामग्री है, उसकी जिम्मेदारी कंही से भी मेरी नही है । ऐसा मै इसलिये कह रह हूँ कि पिछले दिनों मेरा दिमाग दुसरे ग्रह से आये अपहरंकर्ताओं ने कब्जा कर रखा है ।

और हाँ, अगर अपको सामग्री अच्छी लगे तो उसपर अपनी टिपण्णी (कमेंट) जरुर लिखे अन्यथा, इसके बाद कि जिम्मेवारी मेरी नही.....

आदेशानुसार

Saturday 19 May, 2007

अरमान


गहरी आंखों मे दर्द ना बटोरो,
काले बादलों को बरसने तो दो ।

धड़कते अरमानों को बंदिशें न दो,
सुनहरे बालोँ को बिखरने तो दो ।

उबलते जज्बातों को उम्र न दो,
जख्मों को अब पिघल जाने तो दो

चंचल नज़रों पे वक़्त के पहरे ना दो,
पलकों को फिर शर्माने तो दो ।

चेहरे पे चेहरा आने न दो,
गलों पे लाली छाने तो दो ।

तड़पते दिल को यूं जंजीरे ना दो,
चाहतों को यूं हवाओं मे उड़ने तो दो

लंबी जिंदगी को तनहाई न दो,
कानों मे शोर होने तो दों ।