दर्द का रकीब
अपने खामोश आंखों से,
तन मन मे हलचल मचा गया कोई।
अपने तनहाइयों से
मेरे कानों मे शोर कर गया कोइ।
अपने होंठों से
मेरे दिल के तार छेड़ गया कोई।
तन मन मे हलचल मचा गया कोई।
अपने तनहाइयों से
मेरे कानों मे शोर कर गया कोइ।
अपने होंठों से
मेरे दिल के तार छेड़ गया कोई।
ढूंढ़ता हूँ उसे अब ,
तो नजर आती नही ,
खामोशियों मे फिर से खो गया है कोई;
तनहाइयों मे फिर लॉट गया है कोइ;
होंठों को फिर सिल गया है कोई;
कहॉ जाऊं किसे ढूंढु ,
दर्द का रकीब फिर बना गया है कोई।
तो नजर आती नही ,
खामोशियों मे फिर से खो गया है कोई;
तनहाइयों मे फिर लॉट गया है कोइ;
होंठों को फिर सिल गया है कोई;
कहॉ जाऊं किसे ढूंढु ,
दर्द का रकीब फिर बना गया है कोई।
1 comment:
अच्छा लिखा है ।
घुघूती बासूती
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