Monday, 25 June 2007

एक कहानी- भाग ३

नेटवर्क प्रॉब्लम कि वजह से कहानी भाग २ मुझे बिच में ही प्रकाशित करना पड़ा । क्यों कि मुझे ब्लोग एडिट करने का मौका नही मिल। खैर कोई बात अब आगे सुनें ।

पहरा इतना बढ गया कि हमारा मिलना जुलना बहुत मुश्किल हो गया था। मैं अपने घर मे बेचैन था वो अपने घर मे। इस तरह एक दो महिने बीत गए। इधर हमारा इंटर का रिजल्ट भी आ गया। ऐसे ही एक दिन शाम को मैं कंही बहार से अपने घर पहुँचा तो देखा कि मंदीरा के पिताजी मेरे घर आये हुये हैं। मुझे लगा कि उसके पिताजी यंहा क्या कर रहे है ....मैं दुसरे कमरे से पिताजी और सत्येन बाबु कि बातें सुनने लगा। तभी पता चला कि सत्येन बाबु मंदीरा के शादी का न्योता देने आये हैं। यह जानते ही मेरा मन बेचैन हो गया मैं उसी वक़्त घर से निकल गया और गाँव के तालाब के किनारे जा कर बैठ गया। बैठे बैठे कब रात के १२ बज गए पता नही चला। उधर घर मे सब मुझे खोज रहे थे। जब घर वापस आया तो सब लोग परेशान थे। चुकी मैं घर का इकलौता था और इस घटना के बाद घरवाले थोडा परेशान हो गए थे । मेरा दाखिला आगे कि पढ़ाई के लिए शहर के एक कॉलेज मे करवा दिया गया। मैं होस्टल मे रहने लगा पर मेरा मन अभी भी नही लगता था। उसकी शादी की खबर के बाद मैं बिल्कुल टूट चूका था । मैं हर पल मंदीरा के बारे में ही सोचता रहता था । एक भी पल के लिए मैं उसे भूल नही पता था।

ऐसे ही एक दिन मैं काफी बेचैन था मुझे लग रह था कि बस अब जिंदगी मे कुछ नही रहा। मुझे लगा मैं जीने का मकसद ही खो रह हूँ । उसी दिन मैंने होस्टल छोड़ने का फैसला किया और बग़ैर किसी को बताये होस्टल से निकल गया । स्टेशन पहुँचा तो देखा कि गुजरात जाने वाली एक ट्रेन लगी हुई है। मैं उस ट्रेन मे जा कर बैठ गया और गुजरात पहुच गया। मैं उसे भुलाना चाहता था । वहाँ पहुंच कर मैंने पेट पालने के लिए एक छोटी सी नौकरी पकड़ ली। मैं वापस अपने गावं नही जाना चाहता था । इस तरह वहाँ मैंने दो तीन साल बिताएँ पर मैं मंदीरा को भूल नही पाया। इसी बिच मुझे खबर लगी की एक जहाज जो योरोप के लिए जा रही है उसमे कुछ लोगों की जरुरत है। उसको भूलना चाहता था इस लिहाज से मैंने वो नौकरी पकड़ ली और मैं योरोप के लिए रवाना हो गया। दुनियां के कई शहरों मे मैं गया कितने मौसम को महसूस किया पर मंदीरा कि आबोहवा से बहार नही निकल पाया। मैं चाह कर भी उसे नही भूल प रह था । इस तरह १०-१५ साल गुजर गए। इस दौरान कई बार हिंदुस्तान भी आया पर अपने घर नही गया और ना ही उनकी कोई खबर ली। मन मे एक क्रोध और अभिमान था जो इस सब से मुझे दूर रखे हुये था ।

इस बिच एक बार मैं पोंड़ीचेरी गया वहाँ मेरी मुलाक़ात कॉलेज के एक दोस्त से हुई जो मेरे ही रूम मे रहता था। उसने मुझे बताया कि मेरे होस्टल छोड़ने के बाद मेरे घर वाले मुझे खोजने आये थे पर कुछ खबर नही मिलने से परेशान हो कर वो वापस चले गए थे। बाद मे उसने मुझे बताया कि मेरे पिताजी का देहांत हो गया है । यह सुनते ही मैं बिल्कुल टूट गया और वापस अपने गावं चला आया ।

आगे कि कहानी मैं अगले पोस्ट मे बताऊंगा ......

Friday, 22 June 2007

कुछ ऐसे भी होते हैं।

कुछ खुल के बरसते हैं
कुछ सिर्फ ख्वाब ही दिखाते हैं ,
बारिसों में कुछ बादल ऐसे भी होते हैं।

कुछ हवाओं के साथ उड़ते हैं
कुछ साखों के साथ होते हैं,
पतझड़ मे कुछ पत्ते ऐसे भी होते हैं।

कुछ ख्वाबों मे चलते हैं
कुछ हक़ीकत मे जी रहे होते हैं,
भिड़ मे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं।

कुछ छुपाते हैं हमसे
कुछ सब बताते हैं,
दोस्तो मे कुछ दोस्त ऐसे भी होते हैं।




कुछ खंजरों से वार करते हैं
कुछ आपनी आँखों से,
प्यार मे कुछ क़त्ल ऐसे भी होते हैं।

कुछ जान ले लेते हैं
कुछ हंस के जान दे देते हैं,
मुहब्बत मे कुछ किस्से ऐसे भी होते हैं।

कुछ हंस के जीते है
कुछ रो के उम्र बिताते हैं
जहाँ मे कुछ लोग हमारे जैसे भी होते हैं।

Thursday, 21 June 2007

एक कहानी- भाग २

कहानी पे टिपण्णी करने वालों को धन्यबाद! लम्बा इन्तजार करना पड़ा इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।

बुधवार का दिन, और जेठ कि गरमी, पसीने से बुरा हाल था। पर मन मे शांति थी कि आज फिर वो आदमी आने वाला था। हम सारे दोस्त हमेशा कि तरह उसी बस स्टोप के बगल वाले सिगरेट कि दुकान पर खडे थे। पर मेरा ध्यान बार बार हाईवे कि तरफ था और मैं उसके आने का इन्तजार कर रहा था। कुछ देर बाद देखा एक बस आकर रुकी । मैं चुपचाप बस स्टोप के पास चला गया। एक - एक कर के लोग उतरे, पर जिसे मैं खोज रहा वो नही उतरा। थोड़ी देर के लिए मैं परेशां हो गया । मैं सोचने लगा आज वो क्यों नही आये .... और सोचते सोचते मैं वापस जाने लगा । तभी देखा कि जिसे मैं खोज रह था वो हमारे कस्बे कि तरफ जा रहा है। शायद वो पिछे के दरवाजे से उतर गए थे।

खैर मैं उनके पिछे भागा। मन मे कई सवाल थे, सोच रहा था सब एक साथ ही पूछ डालूं... और जब उनके पास पहुंचा तो सांस फूल रहा था। मैं उनसे कुछ पूछ पता इससे पहले उन्होने मेरी तरफ बडे गौर से देखा और हलके से मुस्कुराएँ. मैंने उनको नमस्कार किया और अपने बारे मे बताया । पर आज उनका चेहर कुछ उदास दिख रह था .... कहॉ से पुछू कँहा से नही इसी उधेड़बुन में मैं उनके साथ आगे बढता चला जा रह था । तब तक हमारा क़स्बा आ गया और मेरी हिम्मत नही हुई उनसे कुछ पूछने की । और वो फिर उस औरत के घर चले गए ।

इसी तरह एक दो महिने गुजर गए और हम दोनों के बिच काफी घनिष्ठता हो गयी । हम दोनो एक दुसरे के बारे मे काफी कुछ जान गए थे।

ऐसे ही एक दिन चन्द्रनाथ बाबु फिर से हमारे कस्बे मे आये । उस दिन मेरे घर पर कोई कोई नही था और वो औरत भी कस्बे मे नही थी । इस बात से चन्द्रनाथ बाबु अनजान थें। मैंने उनको बताया कि आप जिससे मिलने जा रहें हैं वो घर पे नही है । फिर मैंने उनको अपने घर चलने का न्योता दिया , थोड़ी देर सोचने के बाद वो राजी हो गए।
हम घर पहुंचे ...और मैं उनके नास्ते का प्रबंध करने लगा। इस बिच हमारी बात चित होती रही । फिर मैंने उनको नास्ता दिया और सोचा अभी मैं सारे सवाल पूछ सकता हूँ । मैंने उनसे पूछा .... वो औरत आपकी क्या लगती है ? यह सुनते ही उनके चहरे पर कई सारे भाव आने- जाने लगे पर कुछ कहा नही। पानी का ग्लास जमीन पे रखा और फिर से नमकीन खाने लगे। अब मैं थोडा हिल गया था पर फिर भी हिम्मत कर के फिर पुछा ... आप एक खास दिन ही उनसे मिलने हमारे कस्बे मे क्यों आते हैं? उन्होने नास्ता खतम किया और एक सिगरेट जलायी। एक लम्बा काश लेकर छत कि तरफ देखा और बोले ..... बहुत लंबी कहानी है सुनना चाहोगे ? मैंने चुपचाप हामी भर दी।
चन्द्रनाथ बाबु ने आखें बंद की और अपने अतीत मे खो गए । मैं उनके पास बैठ कर सब सुनता रहा ।

मंदीरा से मेरी जान पहचान बचपन कि है। हम दोनो इस्लामपुर गाँव के एक ही स्कूल मे पढा करते थे। वो मुझसे एक क्लास नीचे पढ़ती थी। उसका परिवार गरीब था इसलिये वो नयी किताबें नही ख़रीद सकती थी । वो मुझसे मेरी किताब लिया करती थी । फिर बाद में वो मुझसे कुछ सवाल पूछने भी मेरे घर आने लगी । उस वक़्त हम क्लास ९ मे पढ़ते थे। ऐसे ही आने जाने के क्रम मे हमारी दोस्ती हो गयी। अब हम एक दुसरे से मिलने का बहाना खोजने लगे । इंटर तक हमारी दोस्ती प्यार मे बदल गयी। हम एक दुसरे को दिलों जान से चाहने लगे । हम छुप छुप कर मिलने लगे, इधर हमारा प्यार परवान चढ़ने लगा उधर इस बात कि खबर पुरे इस्लामपुर मे आग कि तरह फ़ैल गयी ।

अब हमारे सामने कई दीवारें खड्डी हो गयीं थी। चुकी हम ब्रह्मण परिवार से और पिताजी समाज मे कुछ ज्यादा रसूख रखते थे , मुझे उससे नही मिलने के लिए घर से दबाव दिया जाने लगा। घर मे मेरी शादी कि बात चलने लगी। और मैं मंदीरा से शादी करना चाहता था ।


उधर मंदीरा के घर पे भी मेरे पिताजी के लोगों ने दबाव डाला कि उसकी शादी कंही करवा दी जाय।

Thursday, 14 June 2007

एक कहानी

आइये आज मैं आपका परिचय एक शख्स से करवाता हूँ जिनको हम "बोस दा" के नाम से जानते है । बोस दा मूलतः बंगाली है इसलिये उनका रुझान साहित्य और कला कि तरफ काफी है । यधपि उनको देख कर इस बात का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है क्यूंकि वो हमेशा अपने काम को लेकर ऑफिस मे व्यस्त दिखते है । परंतु अगर उनके काम को देखा जाये तो उसमे आपको इत्मिनान और कला दोनो दिखेंगे । बहुत ही शांत और इत्मिनान स्वभाव के बोस दा और मैं एक दिन अपने इस ब्लोग साईट के बारे मे बात कर रहे थे। बात चित के क्रम मे हम प्यार को लेकर चर्चा करने लगे। उस दिन उन्होने मुझे एक कहानी सुनाई , जिसे मैं आप लोगों को भी सुनाता हूँ ।



हम हमेशा कि तरह उस बस स्टोप के बगल वाले सिगरेट कि दुकान पर खडे थे। कुछ दोस्त पेड के छाँव मे सिगरेट पी रहे थे । अक्सर हम गरमी कि दोपहरी मे वक़्त काटने के लिए अपने दोस्तो के साथ वहाँ इकठ्ठा होते थे । अमित और प्रणव सामने के तालाब मे पत्थर फेंक कर पानी मे उछाल गिन रहे थे । हम बंगाल के छोटे से कस्बे मे रहते थे जहाँ हर तरफ एक खामोशी पसरी होती थी ।

जिस रास्ते के बगल मे हम खडे थे , यधपि था तो एक स्टेट हाईवे पर गाडियां गिनी चुनी ही आती थीं । मेरा ध्यान बस स्टोप कि तरफ था, मैंने देखा .... स्टेट हाईवे कि एक जर्जर बस स्टोप पर आकर रुकी । बस से एक ६५- ७० साल का आदमी उतर कर कस्बे कि तरफ जाने लगा ।

उसके चेहरे पर झुर्रियां थीं, पर बहुत ज्यादा नही । लम्बा क़द... सामने कि तरफ थोडा झुका हुआ । लंबी सफ़ेद दाढ़ी , लंबे सफ़ेद घुंघराले बाल । धोती कुरता पहने हुये हाथ मे एक काला छाता था । कुलमिला कर शांत स्वभाव के लगते थे । महिने मे दो या तीन बार एसे ही आते और कस्बे कि तरफ चले जाते । उस दिन मेरे मन मे उनको जानने कि इच्छा हुई कि वो जाते कहॉ हैं ? हर महिने दो या तीन बार आते है और हमारे कस्बे मे किसके घर जाते है ? कौतुहलवश उस दिन मैं उनके पिछे हो चला ।

पतली पगडण्डी होते हुए वो हमारे कस्बे पंहुचे और एक चौक पर आकर इधर उधर देखा फिर एक घर कि तरफ चले गए । घर का दरवाजा खटखटाया और फिर इधर उधर देखने लगे। तभी एक औरत दरवाजा खोलती है और वो अन्दर चले जाते हैं। औरत भी उन्ही के उम्र के आस पास थी। मैं अच्छी तरह से उस औरत को जनता था । मेरा घर भी पास मे ही था और छोटे कस्बे सब एक दुसरे को जानते ही है पर उनसे बातचीत का कभी मौका नही मिला था । उस औरत का आदमी बाहर कंही काम किया करता था । उसके बच्चे भी बाहर पढ़ते थे। वो घर मे अकेली रहती थी, घोष बाबु भी महिने मे चार या पांच दिन ही कस्बे मे रहा करते थे । यह सब देख कर मेरे मन मे उनको जानने कि इच्छा हुई कि हर महिने वो किस लिए यंहा आते हैं और एक खास दिन ही क्यों आते है ?

बहुत सारीं बातें मेरे मन मे घुमड़ने लगी मैं बेचैन हो गया था । मैं वापस अपने घर चला गया पर मेरा मन उन्ही सब बातों के पिछे लगा हुआ था । कई सारे सवाल मुझे परेशान कर रहे थे । वो आदमी जब घर मे कोई नही रहता है तभी क्यों आता है ? उस औरत के साथ उसका क्या रिश्ता है ? और एक आध घंटे रह कर वो वापस कहॉ चले जाता है ? मैं अच्छी तरह से उस औरत के सभी परिवार वालों को जनता था। यही सोचते सोचते कब आंख लग गयी पता नही चला। उठा तो शाम हो गई थी।

उस दिन के बाद से मैं उनके दुबारा आने का इन्तजार करने लगा क्यूंकि मैं उनको जानना चाहता था । मैं उनसे परिचय करना चाहता था। इस आदमी के पीछे क्या राज है इस बात को लेकर मैं काफी बेचैन था। यह बात मैंने ना अपने दोस्तो को बताया ना ही घरवालों को । मैं चुपचाप उनके दुबारा आने का इन्तजार करने लगा।
आगे कि कहानी अगले पोस्ट में.......

Saturday, 9 June 2007

मैं कौन ??



जानने कि कोशिस करता हूँ
तो अनजान बनते हैं

इकरार करता हूँ
तो इनकार करते हैं


प्यार करता हूँ
तो सवाल करते है

कहॉ जाऊं क्या करूं
चौराहे पर अब उसका
इन्तजार करता हूँ .....

मेरी बुढिया....




तुम्ही तो हो जिससे प्यार किया है
ना वक़्त ना उम्र का लिहाज किया है

तुम्ही तो हो जिससे प्यार किया है
ना वफ़ा ना चाहत का इन्तजार किया है


तुम्ही तो हो जिससे प्यार किया है
ना ज़ख्म ना दर्द का परवाह किया है

तुम्ही तो हो जिससे प्यार किया है
ना खूबसुरती ना जिस्म का चाह किया है

मेरी बुढिया मैंने सिर्फ तुमसे प्यार किया है.....

Thursday, 7 June 2007

खामोशी


साढ़े ६ अरब कि आबादी पर कोई सुनने वाला नही, कोई देखने वाला नही, समझने वाला नही । सब के सब भागे जा रहे हैं , न जाने कहॉ जाना है सब को । बसों मे, ट्रेन मे , फुटपाथ पे ... कंधे से कन्धा को धक्का दे कर चले जा रहे है । कोई किसी से बात नही कर रहा है ।
भिखारी एक कोने मे गुदरी कि तरह पड़ा है जो एक दिन इनकी तरह बन जाने का सपना देखता रहता है ।
लड़का हमेशा कि तरह उसका इन्तजार कर रहा है जिसको कभी खोना नही चाहता है ।
शोर है तो बस इंजन का, रेह्डी वालों का , चने मूंगफली वालों का । मछली वाली बाई गला फाड़ कर चिल्ला रही है .... अस्सी का एक किलो ! अस्सी का एक किलो !
दस का एक ........! दस का एक ........! बार बार चिल्ला कर फुल वाला ग्राहक पता रह है ।

बड़ी अजीब बात है ? घर मे सब कुछ है पर बात करने वाला कोई नही , कभी कोई दरवाजा नही खटखट्टाता । अभी एक खबर पढी .... बोरिवाली मे एक फ़्लैट दो साल से बंद पड़ा था जब खोला गया ... तो एक बुजुर्ग दम्पत्ति मरी पायी गयी । अभी कुछ ही दिन पहले ममता ने आत्महत्या कर ली ..... सुना था कि वो हमेशा गाना गुनगुनाया करती थी " डोंट वरी वी हैप्पी " ..... क्या हो गया था उस रात को ?

अब तो मैं समझना ही नही चाहता, जानना ही नही चाहता । सिर्फ सुनता हूँ , देखता हूँ पर महसूस नही करता ....ऑपरेशन मे कई अंगों के साथ महसूस करने वाला हिस्सा भी कट कर अलग हो गया है ।

मुझे तो लगता है कि साढ़े ६ अरब लोग साढ़े ६ अरब अकेलापन ।

Wednesday, 6 June 2007

इक बात कहूँ ग़र सुनती हो .....


इक बात कहूँ ग़र सुनती हो .....
तुम मुझको अच्छी लगती हो ।

कुछ चंचल सी कुछ चुप चुप सी
कुछ पागल पागल लगती हो ।
हैं चाहने वाल और बहुत
पर तुममे है बात ही कुछ
तुम अपने अपने लगते हो ।

इक बात कहूँ ग़र सुनती हो .....
तुम मुझको अच्छी लगती हो ।

ये बात बात पर खो जाना
कुछ कहते कहते रूक जाना ।
क्या बात है हमसे कह डालो
ये किस उलझन मे रहती हो ।

इक बात कहूँ ग़र सुनती हो .....
तुम मुझको अच्छी लगती हो ।

यंही कंही हो ।



मुझे माफ़ करें आज फिर मुझे आवारगी अच्छी लग रही है । मैं फिर मुद्दे से भटकना चाहता हूँ , आपको तंग करना चाहता हूँ क्या करूं कण्ट्रोल नही होता ।



ये रात है या तुम्हारी जुल्फें खुली हुई है
है चांदनी या तुम्हारी नज़रों से मेरी रातें धूलि हुई हैं
ये चांद है या तुम्हारा कंगन
सितारे हैं या तुम्हारा आँचल
हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन कि खुशबू
ये पत्तियों कि है सरसराहट कि तुमने चुपके से कुछ कहा है
ये सोचता हूँ मैं कब से गुमसुम
कि जबकि मुझको भी ये खबर है कि तुम नही हो,
मगर ये दिल है कि कह रह है यंही हो यंही कंही हो ।