Thursday 9 August, 2007

प्यार को बुलबुले कि जिंदगी दे दे।




ना उम्र ना उसके साथ की चाहत है
बस प्यार को बुलबुले कि जिंदगी दे दे।

ना तख्तो ताज ना आवाम की ख्वाहिश है
बेघर घुमते आवारा को थोड़ी जमीं दे दे।

ना रिश्ते, ना नाते ना दोस्त की तलाश है
उंच नीच समझ सकूं इतनी रौशनी दे दे।

ना सोने कि सेज ना फूलों के हार की तमन्ना है
एक आह भी ना भर सकूं ऐसी मौत ही दे दे।

4 comments:

अनूप शुक्ल said...

आमीन!

उमाशंकर सिंह said...

वाह!

उमाशंकर सिंह said...

कुछ नया पढ़ सकूं, दो-चार नई पंक्ति और दे दे!

उमाशंकर सिंह said...

कुछ नया पढ़ सकूं, दो-चार नई पंक्ति और दे दे!