एक ख़त अनजान शायर के नाम
कुछ दिन पहले एक अनजान शायर की कुछ गजलें और नज्में पढ़ने का मौका मिला और उनके काव्य की संवेदनशीलता और साफगोई ने मुझे ख़ासा प्रभावित किया। कोशिश करूंगा कि उनकी चंद बेहतरीन कृतियाँ आपके सामने रख सकूँ जो उनकी शख्सियत को आपके सामने ज़ाहिर कर सके। तब तक मेरा एक ख़त उस शायर के नाम है जिसे मैं आपके सामने पेश कर रह हूँ।
तेरी रूह से रूबरू हुआ ए शायर आज मैं
एक अरमान अब आखों मे है
यहाँ नही तो क्या हुआ, वहाँ तुमसे मिलूंगा जरुर।
तेरी महफ़िल का गवाह बन ना सका मैं
मौत से दोस्ती होने दे
एक रोज़ वहाँ महफ़िल मे रंग भारुगा जरुर
रंगीन दुनिया भी उसे फीकी नज़र आती है अब
सँभालने दो मुझको
एक रोज़ उसके चश्मे उतारूंगा जरुर।
गैरों कि बातों से परेशान है वो
मैं समझा रह हूँ
वक़्त मिले तो तुम भी उसे समझाना जरुर
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