Friday 13 July, 2007

एक कहानी - अन्तिम कड़ी

यह सोचते-सोचते कि मंदीरा और चन्द्रनाथ बाबु के रिश्ते मे ऐसी क्या बात है जो चन्द्रनाथ बाबु को हर हफ्ते यंहा खिंच लाती है मैं वापस अपने घर चला आया। मैं फिर से उनके आने का इन्तजार करने लगा। बुधवार को मैं फिर से बस स्टोप पर पहुँचा। कई बस आये और चले गए पर चन्द्रनाथ बाबु नही आये। मैं हैरान था कि वो आये क्यों नही । शाम हो गयी थी मैं वापस अपने घर चला आया। उसके बाद वो कई हफ्ते हमारे कस्बे नही आये। मैं परेशान हो गया था की अखिर बात क्या है वो क्यों नही आ रहे है। मैं यह जानने के लिए उनके गावं चला गया। उनके घर पहुंचा तो देखा कि वो काफी बीमार है। मैं उनके सिरहाने जा कर बैठ गया। उनकी आखें बंद थी शायद सो रहे थे। शारीर बुखार से तप रहा था। जैसे ही उनके सर पे हाथ रखा तो वो जाग गए। मुझे अपने पास देख कर वो मुस्कुराएँ और पुछा ....पार्थो तुम कब आये? मैंने उनको बताया कि आपके नही आने से मैं बेचैन हो गया था इसलिये मैं आपको देखने के लिए यहाँ चला आया। उन्होने बताया कि उस दिन के बाद से उनकी तबियत खराब चल रही है उनको मियादी बुखार हो गया है। उन्होने मंदीरा के बारे मे पुछा। मैंने उनको बताया कि वो ठीक है। करीब दो तीन घंटे बैठने के बाद मैं वहाँ से वापस अपने घर चला आया।

ऐसे ही बुधवार के दिन मैंने देखा कि एक शख्स हमारे कस्बे कि तरफ आ रह है, जिसके आओ भाव बिल्कुल चन्द्रनाथ बाबु से मिल रहे है। मैं दौड़ कर उनके पास गया तो देखा कि चन्द्रनाथ बाबु ही है। पर काफी कमजोर लग रहे थे। शारीर और थोडा सामने कि तरफ झुक गया था और हाथ मे छाता के अलावा एक डंडा भी था जिसके सहारे वो चल रहे थे। मैंने उनसे उनका हालचाल पुछा और उनके साथ चले लगा। जब हम मंदीरा के घर के पास पहुंचे तो उन्होने मुझे भी अन्दर आने को कहा। मैं उनके साथ अन्दर चला गया। फिर उन्होने मेरा परिचय मंदीरा से कराया । मैंने देखा घर पे कोई भी नही था और मंदीरा खाना बाना रही थी। चूल्हे के पास ही उसने दो आसान लगा दिए और बैठेने का इशारा किया। उसके बाद वो हमारे लिए कुछ नास्ता पानी लेने अन्दर कमरे मे चली गयी। नास्ता देकर वो भी हमारे पास आकर बैठ गयी और फिर उसने चन्द्रनाथ बाबु से उनका हाल चाल पुछा। "जिंदगी समाप्ती कि तरफ है मैं उसकी परवाह नही करता , तुम भी ना करो तो अच्छा है " ऐसा कह कर चन्द्रनाथ बाबु खामोश हो गए और मंदीरा कि ऑंखें गीली होने को थी। यह देख मैं वहाँ से उठ कर आंगन मे चला आया। पर मेरा ध्यान उनकी तरफ ही था दूर से ही मैंने देखा कि दोनो एक दुसरे को निहार रहे है और दोनो कि आँखों मे आंसू बह रहे थे। कुछ देर बाद चन्द्रनाथ बाबु ने मुझे आवाज दी और कहा चलो अब जाने का वक्त हो गय है। जब मैं चन्द्रनाथ बाबु के पास पहुँचा तो देखा कि मंदीरा एक पान ला कर चन्द्रनाथ बाबु को दे रही है। चन्द्रनाथ बाबु ने पान लिया और बडे तृप्त मन से उसको चबाते हुए बहार निकलने लगे। फिर मैं उनको बस स्टोप तक छोड़ने साथ साथ गया। उनकी बस आई और वो चले गए ।
उस दिन के बाद फिर वो फिर मंदीरा से मिलने कभी नही आये. दो तीन हफ्ते हो गए फिर एक दिन उनके गावं से एक आदमी मेरे पास आया और उसने बताया कि उनकी तबियत बहुत खराब है आपको बुलया है। मैंने उनसे कहा आप चलिये मैं आता हूँ यह कह कर मैं मंदीरा के घर के तरफ जाने लगा। मैंने सोचा चलो मंदीरा को भी खबर दे देता हूँ। मैंने मंदीरा को बताया तो वो भी जाने के लिए निकल पडे,फिर हम दोनो एक तांगा किया और निकल पडे।
हम करीब ९ बजे के आस पास हम उनके गावं पहुंच गए। मंदीरा अपने घर चली गयी और मैं सीधा चन्द्रनाथ बाबु के पास चला गया। उनको देखा तो तो उनकी हालत बहुत खराब थी बुखार से शारीर तप रह था। सांस लेने मे भी काफी तकलीफ हो रही थी। वो काफी पीडा से गुजर रहे थे। आंखे बंद थी उनकी मैंने उनके सर पे हाँथ रखा तो उन्होने थोड़ी सी आंख खोली और बैठने का इशारा कर फिर से आंखे बंद कर ली। तभी मंदीरा भी अपने भाई के साथ वहाँ पहुंची उनको देख कर मंदीरा के आंख भर आये थे पर वो अपने जज्बात पर काबू करने कि कोशिश कर रहीं थी। मैंने धीरे से चन्द्रनाथ बाबु को बताया कि मंदीरा जी आयी हैं। चन्द्रनाथ बाबु ने मंदीरा कि तरफ देखा और आँखों से आंसू कि एक मोटी धर बह पडी। अब मंदीरा भी फुट फुट कर रोने लगी दोनो एक दुसरे कि तरफ देख रहे थे और रोये जा रहे थे। थोड़ी देर देखने के बाद चन्द्रनाथ बाबु के चहरे पे एक मुस्कान आयी और उन्होने अपनी आंखें बंद कर ली। फिर उसके बाद उन्होने आंखे नही खोली। शारीर ढीला हो गया था। पर चहरे पे अब भी वो मुस्कराहट बरकरार थी। मैंने उनके शारीर को छू कर देखा..... सांस रूक गयी थी धड़कन बंद थे..... चन्द्रनाथ बाबु हम लोगों को छोड़ कर चले गए थे। मंदीरा के आंसू रूक नही रहे थे।
एक जीवन इतिहास कि अन्तिम कड़ी का गवाह बन कर मैं चुप चाप यह सब देखता रहा। मैं उनके अन्तिम यात्रा मे भी उनके साथ था। शमशान पहुंच कर शव यात्री अन्तिम क्रिया क्रम की तयारी मे जुट गए। मैं अपने को उनसब से अलग कर नदी के किनारे जा कर बैठ गया था। अचानक चिड़ियों के घर लौटने के शोर से मेरी तन्द्रा टूटी तो देखा कि सूरज डूबने को है। थोडा धुआं अब भी आसमान कि तरफ उठ रहा था. शव यात्री कब घर लॉट चुके थे मुझे पता ही नही था. मैं भी उठा और यह सोचते सोचते कि इस प्यार को मैं क्या नाम दूँ , मेरे कदम धीरे धीरे बढ्ने लगे।

आज भी मैं चन्द्रनाथ बाबु और मंदीरा के प्यार कि परिभाषा समझ नही पाया.....
......समाप्त ....

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