दिल के अरमान
दिल के अरमान एक एक कर टूटे हैं
आखों मे बसें ख्वाब सभी झूठे हैं।
कैसे भुला दूँ मैं उसकी यादों को
मुह से लगे जाम भी क्या कभी छूटे है।
दिल से ना जाने कैसी खता हो गयी है
चांद को चाहा तो सितारे मुझ से रुठें हैं।
जिनको थाम के करना था खुशियों का सफ़र तय
वही हाथ मेरे हाथों से क्यों छूटे हैं।
गैरों से क्या करूं अपनी बर्बादी का शिकवा
मेरे ख्वाब तो मेरे अपनों ने ही लुटें हैं।
कैसे समेट लूं उन लम्हों को तहरीरों में
लिखने बैठा तो अल्फाज़ मुझ से रुठें हैं
अंतरा
आखों मे बसें ख्वाब सभी झूठे हैं।
कैसे भुला दूँ मैं उसकी यादों को
मुह से लगे जाम भी क्या कभी छूटे है।
दिल से ना जाने कैसी खता हो गयी है
चांद को चाहा तो सितारे मुझ से रुठें हैं।
जिनको थाम के करना था खुशियों का सफ़र तय
वही हाथ मेरे हाथों से क्यों छूटे हैं।
गैरों से क्या करूं अपनी बर्बादी का शिकवा
मेरे ख्वाब तो मेरे अपनों ने ही लुटें हैं।
कैसे समेट लूं उन लम्हों को तहरीरों में
लिखने बैठा तो अल्फाज़ मुझ से रुठें हैं
अंतरा
1 comment:
Wah Wah wah! kya khubsurati se swanra hai... aise hi post karte rahiye...
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