Friday 22 June, 2007

कुछ ऐसे भी होते हैं।

कुछ खुल के बरसते हैं
कुछ सिर्फ ख्वाब ही दिखाते हैं ,
बारिसों में कुछ बादल ऐसे भी होते हैं।

कुछ हवाओं के साथ उड़ते हैं
कुछ साखों के साथ होते हैं,
पतझड़ मे कुछ पत्ते ऐसे भी होते हैं।

कुछ ख्वाबों मे चलते हैं
कुछ हक़ीकत मे जी रहे होते हैं,
भिड़ मे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं।

कुछ छुपाते हैं हमसे
कुछ सब बताते हैं,
दोस्तो मे कुछ दोस्त ऐसे भी होते हैं।




कुछ खंजरों से वार करते हैं
कुछ आपनी आँखों से,
प्यार मे कुछ क़त्ल ऐसे भी होते हैं।

कुछ जान ले लेते हैं
कुछ हंस के जान दे देते हैं,
मुहब्बत मे कुछ किस्से ऐसे भी होते हैं।

कुछ हंस के जीते है
कुछ रो के उम्र बिताते हैं
जहाँ मे कुछ लोग हमारे जैसे भी होते हैं।

1 comment:

उमाशंकर सिंह said...

विनोद, तुम्हारी इस कविता को निधि कुलपति जी ने देखा। बहुत अच्छा लगा और उन्होने मुझे तुमसे कन्वे करने को बोला क्योंकि वो कमेंट पोस्ट नहीं कर पा रही थीं।

ऐसे ही लिखते रहे।