Thursday 7 June, 2007

खामोशी


साढ़े ६ अरब कि आबादी पर कोई सुनने वाला नही, कोई देखने वाला नही, समझने वाला नही । सब के सब भागे जा रहे हैं , न जाने कहॉ जाना है सब को । बसों मे, ट्रेन मे , फुटपाथ पे ... कंधे से कन्धा को धक्का दे कर चले जा रहे है । कोई किसी से बात नही कर रहा है ।
भिखारी एक कोने मे गुदरी कि तरह पड़ा है जो एक दिन इनकी तरह बन जाने का सपना देखता रहता है ।
लड़का हमेशा कि तरह उसका इन्तजार कर रहा है जिसको कभी खोना नही चाहता है ।
शोर है तो बस इंजन का, रेह्डी वालों का , चने मूंगफली वालों का । मछली वाली बाई गला फाड़ कर चिल्ला रही है .... अस्सी का एक किलो ! अस्सी का एक किलो !
दस का एक ........! दस का एक ........! बार बार चिल्ला कर फुल वाला ग्राहक पता रह है ।

बड़ी अजीब बात है ? घर मे सब कुछ है पर बात करने वाला कोई नही , कभी कोई दरवाजा नही खटखट्टाता । अभी एक खबर पढी .... बोरिवाली मे एक फ़्लैट दो साल से बंद पड़ा था जब खोला गया ... तो एक बुजुर्ग दम्पत्ति मरी पायी गयी । अभी कुछ ही दिन पहले ममता ने आत्महत्या कर ली ..... सुना था कि वो हमेशा गाना गुनगुनाया करती थी " डोंट वरी वी हैप्पी " ..... क्या हो गया था उस रात को ?

अब तो मैं समझना ही नही चाहता, जानना ही नही चाहता । सिर्फ सुनता हूँ , देखता हूँ पर महसूस नही करता ....ऑपरेशन मे कई अंगों के साथ महसूस करने वाला हिस्सा भी कट कर अलग हो गया है ।

मुझे तो लगता है कि साढ़े ६ अरब लोग साढ़े ६ अरब अकेलापन ।

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