Thursday 24 May, 2007

वो क्या था ?



बात उन दिनों कि है जब मैं क्लास चौथी या पांचवी मे पड़ता था । मेरे स्कूल मे एक टीचर हुआ करतीं थी, नाम याद नही वैसे भी नाम मे क्या रक्खा है । हाँ लेकिन चेहरा अब भी याद है; घुंघराले बाल थे उनके, मोटी लंबी आंखे, गोल चेहरा कुल मिला कर बहुत अच्छी नही पर मुझे बहुत अच्छी लगतीं थी और आज भी अच्छी लगती है ।

मैं उस वक्त ८ या ९ साल का होऊंगा । लाजमी है कि उस उम्र मे मुझे रिश्तों के बारे में बहुत पता नही था इतना जरुर था कि जब भी वो क्लास लेने आती थी मुझे बहुत अच्छा लगता था । मै अन्दर ही अन्दर उनको लेकर कितने ख्वाब देखने लगता था । यधपि हमारे क्लास मे बहुत लडकियां मेरे उमर कि थीं पर फिर भी मेरा ध्यान उनकी तरफ कम होता था । मै तो बस टीचर कि आँखों मे ही देखता रहता था । वो भी मुझे बहुत प्यार करती थी क्यों कि मैं क्लास के अच्छे पढने वाले लड़कों में आता था ।

एक बार कि बात है ... मै उस वक़्त क्लास का मोनिटर था । मोनिटर होने के नाते मेरी चलती थी । मै उस दिन घर से बेना (पंखा ) का डंडा लेकर स्कुल गया था क्यों कि मै थोद्दा और रॉब झाड़ना चाहता था ।

मेरे साथ मेरे चाचा का लड़का मनोज भी पढता था, वो पढने मे कम मार पिटाई मे ज्यादा ध्यान देता था । उसी दिन टिफिन (लंच) मे उसकी हमारे ही क्लास के दुसरे सेक्शन के लड़के सूरज के साथ मार पिटाई हो गई । इस बात को लेकर मै बहुत ग़ुस्से में था मैंने सोचा ठिक है बच्चू मै तुम्हे बताता हूँ ... पर उस वक़्त कुछ किया नही । टिफिन के बाद देखा कि सूरज टॉयलेट कि तरफ जा रह है । मोनिटर होने के नाते किसी बहाने से मै क्लास से बाहर निकला और टॉयलेट के बाहर जा कर खड़ा हो गया । उसके निकलते ही मैंने उसी डंडे से धुलाई चालू कर दी . उसी क्रम में मेरी उंगली डंडे मे लगे किल से कट गयी और कटी भी इतनी कि अलग होने के आस पास । बस फिर क्या था खून देखते ही ड़र गया था और सूरज भी भाग गया था । किसी तरह मैं उंगली पकड़ कर प्रिंसिपल रूम कि तरफ भगा । काफी दर्द हो रहा था आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे । खैर प्रिंसिपल रूम मे मेरी पट्टी वटि लगायी गयी । मैं रो रहा था तभी देखा कि वही टीचर सामने से आ रही है ... उनको देखते ही मई अपने आप को सँभालने कि कोशिस करने लगा .

वो मेरे पास आई और मेरे हाथो को अपने हाथ में लिया ... मेरे उंगलियों को जैसे ही छुआ दर्द मानों ग़ायब ही हो गया । मैं चुप हो गया था आंसू रूक गए थे । मैं फिर से गोते लगाने लग गया था । फिर ना जाने क्या क्या ख्वाब देखने लग गया था .....
मैं ये आप बीती इस लिए लिख रह हूँ क्यों कि इसकी धुंधली यादें आज भी मुझे कंही ले जाती है । पर इसके पीछे कई सवाल भी है जिनका उत्तर आज आज भी खोजने कि कोशिस करता हूँ ।

इस उमर में क्या ऐसा होता है ?

अगर होता है तो क्लास मे और भी हम उम्र लडकियां थीं टीचर को लेकर ही क्यों?

उनके छूने से दर्द का गायब हो जाना क्या था ?

इस रिश्ते को क्या कंहेंगे ?

ऐसे कई सवाल है, मैं जाना नही चाहता पर आज भी मैं अपनी जिंदगी के पीछे के पन्ने पलटता हूँ तो खो जाता हूँ.....

क्या आप भी ?

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